बेंगलुरु: कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 4 जून को चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुए भगदड़ मामले की जांच हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज माइकल डी'कुन्हा करेंगे। गुरुवार को कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने कैबिनेट की बैठक के बाद एक सदस्यीय अयोग के गठन का ऐलान किया। सीएम ने कहा कि आयोग 30 दिन अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। सीएम ने इस मौके पर कहा कि उन्होंने राज्य के आईजीपी और डीजीपी को निर्देश दिया है कि वे RCB के प्रतिनिधि, DNA इवेंट मैनेजर और KSCA का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार करें। सीएम ने बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त आईपीएस बी दयानंद समेत आठ पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड किया है।
अब भगदड़ की करेंगे जांच
रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के आईपीएल ट्रॉफी जीतने के बाद चिन्नास्वामी स्टेडियम में स्वागत कार्यक्रम रखा गया था। इस कार्यक्रम शामिल होने के लिए करीब तीन लोग स्टेडियम के आसपास पहुंच गए थे। ऐसी स्थिति में वहां पर स्टेडियम के गेट पर जमा प्रशंसकों को हटाने के लिए पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया था। इसके बाद भगदड़ मच गई थी। इसमें 11 लोगों की मौत हो गई थी। आरसीबी की जीत का जश्न मातम में बदल गया था। सरकार ने विपक्ष के हमले और चौतरफा घिरने के बाद इस भगदड़ हादसे की जांच सेवानिवृत्त जज डी'कुन्हा' को सौंपी है। डी''कुन्हा' फरवरी 2017 में तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने तमिलनाडु की निकटतम सहयोगी रही शशिकला को दोषी ठहरा दिया था। उस वक्त पर वह एआईएडीएमके की कार्यकारी महासचिव थीं। ऐसा माना जाता है कि कर्नाटक हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति जॉन माइकल डी'कुन्हा के तौर पर उन्होंने यह फैसला देकर शशिकला के सीएम बनने का सपना चकनाचूर कर दिया था।
खुद लिखे थे फैसले के 300 पेज
तब जस्टिस डी'कुन्हा ने 1,136 पन्नों के जयललिता-शशिकला फैसले के आखिरी 300 पेज भी खुद लिखे। पूर्व जस्टिस डी'कुन्हा कानून के काफी अच्छे ज्ञाता हैं। वे अपने कार्यकाल में काफी अच्छे और कड़क फैसलों के लिए जाने गए। डी'कुन्हा' ने अपने फैसले से जहां शशिकला का ड्रीम तोड़ दिया था। उन्होंने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी थी। उन्होंने ही तत्कालीन तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता के साथ शशिकला, वीएन सुधाकरन और इलावरासी को उनकी ज्ञात आय के स्रोतों से अधिक संपत्ति के लिए दोषी ठहराया गया था। यह फैसला उन्होंने 27 सितंबर 2014 को दिया था। इतना ही नहीं डी'कुन्हा' ने इससे पहले 2004 में हुबली ईदगाह मैदान मामले में मध्य प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती के खिलाफ दंगों के आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया था। तब भी उनके काफी राजनैतिक दबाव को झेलना पड़ा था। डी'कुन्हा' को करीब से जानने वाले कहते हैं कि ऐसे काफी कम जज हैं जो इस तरह का दबाव झेल सकें। डी'कुन्हा' हालांकि कई बार अपने कार्यकाल में बीजेपी के निशाने पर आ चुके हैं।
कर्नाटक हाईकोर्ट से हुए रिटायर
जॉन माइकल डी'कुन्हा को 1 नवंबर 2018 को कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। जन्म 7 अप्रैल 1959 को जन्में डी'कुन्हा' अब 66 साल के हैं। डी'कुन्हा' अक्टूबर 2013 में भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायाधीश एमएस बालकृष्ण की जगह मामले की जांच करने के लिए पांचवें न्यायाधीश के रूप में इस पद पर नियुक्त किया गया था। मैंगलोर के एसडीएम लॉ कॉलेज में पढ़ाई की, जहां उन्होंने वॉलीबॉल भी खेला। डी'कुन्हा ने 1985 में अपनी वकालत शुरू की थी। डी'कुन्हा' 6 अप्रैल 2021 को कर्नाटक हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए। डी'कुन्हा' मैंगलोर से 18 किलोमीटर कैकम्बा के गुरुपुर से रहने वाले हैं।
अब भगदड़ की करेंगे जांच
रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के आईपीएल ट्रॉफी जीतने के बाद चिन्नास्वामी स्टेडियम में स्वागत कार्यक्रम रखा गया था। इस कार्यक्रम शामिल होने के लिए करीब तीन लोग स्टेडियम के आसपास पहुंच गए थे। ऐसी स्थिति में वहां पर स्टेडियम के गेट पर जमा प्रशंसकों को हटाने के लिए पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया था। इसके बाद भगदड़ मच गई थी। इसमें 11 लोगों की मौत हो गई थी। आरसीबी की जीत का जश्न मातम में बदल गया था। सरकार ने विपक्ष के हमले और चौतरफा घिरने के बाद इस भगदड़ हादसे की जांच सेवानिवृत्त जज डी'कुन्हा' को सौंपी है। डी''कुन्हा' फरवरी 2017 में तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने तमिलनाडु की निकटतम सहयोगी रही शशिकला को दोषी ठहरा दिया था। उस वक्त पर वह एआईएडीएमके की कार्यकारी महासचिव थीं। ऐसा माना जाता है कि कर्नाटक हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति जॉन माइकल डी'कुन्हा के तौर पर उन्होंने यह फैसला देकर शशिकला के सीएम बनने का सपना चकनाचूर कर दिया था।
खुद लिखे थे फैसले के 300 पेज
तब जस्टिस डी'कुन्हा ने 1,136 पन्नों के जयललिता-शशिकला फैसले के आखिरी 300 पेज भी खुद लिखे। पूर्व जस्टिस डी'कुन्हा कानून के काफी अच्छे ज्ञाता हैं। वे अपने कार्यकाल में काफी अच्छे और कड़क फैसलों के लिए जाने गए। डी'कुन्हा' ने अपने फैसले से जहां शशिकला का ड्रीम तोड़ दिया था। उन्होंने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी थी। उन्होंने ही तत्कालीन तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता के साथ शशिकला, वीएन सुधाकरन और इलावरासी को उनकी ज्ञात आय के स्रोतों से अधिक संपत्ति के लिए दोषी ठहराया गया था। यह फैसला उन्होंने 27 सितंबर 2014 को दिया था। इतना ही नहीं डी'कुन्हा' ने इससे पहले 2004 में हुबली ईदगाह मैदान मामले में मध्य प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती के खिलाफ दंगों के आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया था। तब भी उनके काफी राजनैतिक दबाव को झेलना पड़ा था। डी'कुन्हा' को करीब से जानने वाले कहते हैं कि ऐसे काफी कम जज हैं जो इस तरह का दबाव झेल सकें। डी'कुन्हा' हालांकि कई बार अपने कार्यकाल में बीजेपी के निशाने पर आ चुके हैं।
कर्नाटक हाईकोर्ट से हुए रिटायर
जॉन माइकल डी'कुन्हा को 1 नवंबर 2018 को कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। जन्म 7 अप्रैल 1959 को जन्में डी'कुन्हा' अब 66 साल के हैं। डी'कुन्हा' अक्टूबर 2013 में भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायाधीश एमएस बालकृष्ण की जगह मामले की जांच करने के लिए पांचवें न्यायाधीश के रूप में इस पद पर नियुक्त किया गया था। मैंगलोर के एसडीएम लॉ कॉलेज में पढ़ाई की, जहां उन्होंने वॉलीबॉल भी खेला। डी'कुन्हा ने 1985 में अपनी वकालत शुरू की थी। डी'कुन्हा' 6 अप्रैल 2021 को कर्नाटक हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए। डी'कुन्हा' मैंगलोर से 18 किलोमीटर कैकम्बा के गुरुपुर से रहने वाले हैं।