Rising Juvenile Crime In Delhi Changing Behavior Of Children And The Impact Of Social Media
कहीं अपराध की ABCD तो नहीं पढ़ रहा आपका बच्चा? डरा रहे हैं दिल्ली के ये तीन केस
युवाओं के अपराधों में शामिल होने की बढ़ती घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी है। युवाओं में असुरक्षा, गुस्सा और जलन जैसी भावनाएं बढ़ रही हैं, जिसका कारण सोशल मीडिया और सिनेमा का प्रभाव है।
नई दिल्ली: पिछले कुछ समय से युवाओं के गंभीर अपराधों में शामिल होने की तमाम खबरें आ रही हैं। इसके चलते युवाओं के व्यवहार में बदलाव पर भी चर्चा शुरू हो गई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि बड़ी संख्या में बच्चे अब बेहद आक्रामक हो गए हैं और वे अपना गुस्सा कंट्रोल नहीं कर पाते। इसकी वजह क्या है, हमने यह जानने की कोशिश की-
AI Image (फोटो- नवभारतटाइम्स.कॉम)
केस 1 : महरौली में 18 साल की लड़की की हत्या के आरोप में उसके कथित बॉयफ्रेंड को पुलिस ने गिरफ्तार किया।
केस 2 : गोविंदपुरी में एक 17 साल के छात्र की हत्या के आरोप में 16 साल के तीन लड़को को गिरफ्तार किया गया।
केस 3 : शकरपुर में 14 साल के स्कूल छात्र की हत्या के आरोप में उसकी क्लास के छात्र गिरफ्तार किए गए।
पिछले दिनो ओटीटी पर रिलीज हुई ब्रिटिश वेब सीरीज एडोलसेन्स (Adolescence) में हमने देखा कि कैसे स्कूल के एक छात्र ने बुली होने पर अपने साथी की हत्या कर दी। सोशल मीडिया पर भी इस तरह की रील्स वायरल हो जाती हैं, जिनमें युवा गैंगवॉर की बात करते हैं और चाकू-बंदूक इत्यादि दिखाते हैं। मगर अब वही सब धीरे-धीरे असल जिंदगी में भी सामने आ रहा है। ऊपर दिए गए तीनों मामले इसी साल सिर्फ दिल्ली के हैं। मगर पूरे देश में ऐसे ना जाने कितने मामले हुए होंगे। बीते कुछ सालों को देखें तो दिल्ली के तमाम युवाओं के अपराधों में शामिल होने की खबरें आई हैं। इससे पैरंट्स चिंतित हैं, खासकर वे पैरंट्स जिनके बच्चे अभी छोटे हैं।
तेजी से बदल रहा है बच्चों का व्यवहार
मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि पिछले कुछ सालों में युवाओं का व्यवहार तेजी से बदला है। उनके पास ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है, जो हिंसक प्रवृत्ति, नशे और असुरक्षा-जलन जैसे नकारात्मक इमोशंस की जकड़ में हैं। इंदिरा गांधी अस्पताल में मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर अंकित दराल कहते हैं, 'पिछले कुछ वर्षों में युवाओं के व्यवहार में स्पष्ट बदलाव देखे जा रहे हैं। अब युवाओं में असुरक्षा, गुस्सा और जलन की भावनाएं पहले से अधिक देखने को मिल रही हैं।
इसके अलावा उनमें चिड़चिड़ापन, एकाग्रता की कमी, समाज से दूरी बनाना, नींद का बिगड़ना, स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताना और तुरंत परिणाम की अपेक्षा रखना, आत्मविश्वास की कमी और आत्मसम्मान में गिरावट भी देखने को मिल रही है। इनमें से कुछ समस्याएं मानसिक बीमारियों जैसे एंग्जायटी, डिप्रेशन व ओसीडी की ओर भी इशारा कर सकती हैं। जबकि कुछ समाज और आसपास के माहौल से प्रभावित सामान्य व्यवहारिक प्रतिक्रियाएं होती हैं।'
वहीं एशियन हॉस्पिटल में मनोरोग विभाग की प्रमुख डॉक्टर मीनाक्षी मनचंदा कहती हैं कि अब बच्चों को गुस्सा बहुत जल्दी आने लगा है और वे इस पर कंट्रोल नहीं कर पाते हैं। कोविड के बाद तो ऐसे मामलो में बहुत तेजी से बढ़ोतरी हुई है। बहुत सारे बच्चे हाइपर एक्टिविटी डिसॉर्डर के शिकार भी आ रहे हैं, जिसमें बच्चे पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पाते। लेकिन उनका दिमाग बहुत तेज चलता है। तो उनका दिमाग हम कहां लगाते हैं, यह पैरंट्स पर निर्भर है।
सोशल मीडिया का असर, बदल गए रोल मॉडल
आखिर युवाओं के व्यवहार में असुरक्षा और गुस्से जैसे नेगेटिव इमोशंस इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहे हैं? डॉक्टर्स का कहना है कि इसकी कई वजहे हैं, मगर सोशल मीडिया और सिनेमा का कंटेंट इसमें अहम भूमिका निभाता है। पीएसआरआई अस्पताल में सीनियर सायकायट्रिस्ट और विभाग प्रमुख डॉक्टर परमजीत सिंह कहते हैं, 'इस प्रवृत्ति को विज्ञान की भाषा में इम्पल्सिव बिहेवियर कहा जाता है और यह धीरे-धीरे बढ़ रहा है। नेगेटिव इमोशंस तो बच्चों में पहले भी होते थे। लेकिन तब बड़ों के प्रभाव और सामाजिकता के कारण वह इससे हेल्दी तरीके से निपट पाते थे। लेकिन आजकल अकेलापन और कुंठा बढ़ गई है, जो हिंसा के रूप में बाहर आ रही है।
पहले जहां बच्चे अपने रोल मॉडल अच्छे लोगों को बनाया करते थे, वहीं अब बच्चे अपने रोल मॉडल फिल्मों में नजर आने वाले हिंसात्मक हीरोज़ को बना रहे हैं। सोशल मीडिया का क्विक फेम और मनी इसे और बढ़ावा देता है।
- डॉक्टर परमजीत सिंह, सायकायट्रिस्ट
इसकी वजह ये है कि बच्चों को हर चीज जल्दी मिल रही है तो उनमें धैर्य की कमी हो गई है। ये लोग अपने आगे किसी की सुनना नहीं चाहते। इनका समाज से जुड़ाव कम हो रहा है, तो अपना गुस्सा दूसरों पर निकालते हैं। वहीं टीवी पर हिंसात्मक चीजों को हीरो की तरह दिखाया जाता है। तो पहले जहां बच्चे अपने रोल मॉडल अच्छे लोगों को बनाया करते थे, वहीं अब बच्चे अपने रोल मॉडल इन हीरोज़ को बना रहे हैं। सोशल मीडिया का क्विक फेम और मनी इसे और बढ़ावा देता है।' जबकि डॉक्टर अंकित कहते हैं, 'सोशल मीडिया का युवाओं के व्यवहार में बदलाव में बड़ा योगदान है। निरंतर तुलना, फिल्टर की गई जिंदगी देखना और लाइक्स व फॉलोअर्स के पीछे भागना युवाओं के आत्मसम्मान को प्रभावित करता है। इससे वास्तविकता से दूरी, ध्यान भटकाव और सोशल एंग्जायटी बढ़ रही है।'
अपने ही घर में डरकर जीते हैं पैरंट्स
यह माहौल उन पैरंट्स को तो परेशान कर ही रहा है, जिनके बच्चे इस तरह के अपराधों से जुड़े हैं। लेकिन उन्हें भी परेशान कर रहा है जिनके बच्चे छोटे हैं और स्कूल में पढ़ रहे हैं। पांच साल के बच्चे के पिता कपिल कहते हैं, अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है। लेकिन मैं डरता हूं कि यही माहौल रहा तो अगले 10-12 साल बाद मैं कैसे अपने बच्चे को मोहल्ले के पार्क और ग्राउंड में खेलने भेजूंगा। क्या मैं पूरा दिन उसके साथ रहूंगा? वरना उसे कैसे ऐसे माहौल से बचा पाऊंगा?
मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन बदलावों का असर बच्चों पर भी है। बकौल डॉक्टर अंकित, 'हिंसा, अश्लीलता और असामाजिक व्यवहार के सामान्य होने के साथ युवा संवेदनहीन हो सकते हैं। साथ ही, ये उनके नैतिक विकास और भावनात्मक समझ को भी प्रभावित करते हैं। इन बदलावों का दीर्घकालिक असर चिंता, डिप्रेशन, संबंधों में अस्थिरता और काम करने की क्षमता में गिरावट के रूप में सामने आ सकता है। फैसला लेने की क्षमता और भावनात्मक मैच्योरिटी भी इससे प्रभावित होती है, जिससे वे भविष्य में व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में संघर्ष कर सकते हैं।'
पिछले कुछ वर्षों में युवाओं के व्यवहार में स्पष्ट बदलाव देखे जा रहे हैं। अब युवाओं में असुरक्षा, गुस्सा और जलन की भावनाएं पहले से अधिक देखने को मिल रही हैं।
डॉक्टर अंकित दराल, सायकायट्रिस्ट
जबकि डॉक्टर मीनाक्षी बताती हैं, 'जिन लोगों का ऐसा आक्रामक, असुरक्षा, जलन और नेगेटिव इमोशंस वाला व्यवहार होता है, उनके साथ जिंदगी बिताना मुश्किल होता है। यह उनके पैरंट्स और लाइफ पार्टनर पर बुरा असर डालते हैं। पैरंट्स तो इस वजह से बहुत परेशान रहते हैं और अपने ही घर में डरकर जी रहे होते हैं कि कहीं बच्चा उनकी बातों पर गलत रिएक्ट ना करे। फिर अगर वह बाहर कुछ करता है, तो उन्हें अपनी इज्जत को लेकर भी डर लगता है। बच्चे के भविष्य को लेकर तो डर लगता ही है।'
- अगर आपके मन में इस विषय से जुड़ा कोई सवाल है तो आप हमें लिख भेजिए dtmmresponse@timesofindia.com पर।
Crimeकी ताजा खबरें, ब्रेकिंग न्यूज, अनकही और सच्ची कहानियां, सिर्फ खबरें नहीं उसका विश्लेषण भी। इन सब की जानकारी, सबसे पहले और सबसे सटीक हिंदी में देश के सबसे लोकप्रिय, सबसे भरोसेमंद Hindi Newsडिजिटल प्लेटफ़ॉर्म नवभारत टाइम्स पर