Please enable javascript.तार पर लटके कपड़े, जूते-चप्पल इतने कि 150 बोरियां फुल हो गई...बेंगलुरु भगदड़ के भयावह मंजर देख कांपे सफाईकर्मी - workers shocked to see the scene of bengaluru stampede 150 sacks of shoes were found outside chinnaswamy stadium - Hindi News Navbharat Times

तार पर लटके कपड़े, जूते-चप्पल इतने कि 150 बोरियां फुल हो गई...बेंगलुरु भगदड़ के भयावह मंजर देख कांपे सफाईकर्मी

Curated by: विश्वनाथ सुमन|नवभारतटाइम्स.कॉम

आरसीबी के विक्ट्री परेड में बुधवार को मची भगदड़ कितनी खौफनाक थी, इसका अंदाजा अगले दिन गुरुवार को वहां मौजूद निशानों से लगाया जा सकता है। सफाईकर्मियों का कहना है कि स्टेडियम का नुकसान तो ठीक हो जाएगा, मगर जिनके घर के लोगों की जान चली गई, वह कैसे वापस आएंगे।

chinnaswamy stadium stampede
(फोटो- नवभारतटाइम्स.कॉम)
बेंगलुरु : आरसीबी के आईपीएल विजेता बनने का जश्न 11 परिवारों के लिए मातम बन गया। बुधवार को बेंगलुरु के नौजवान अपने फेवरेट आरसीबी के सपोर्ट के लिए लाखों की संख्या में सड़क पर उतरे थे। चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर भगदड़ में मारे गए सारे 11 लोग युवा थे। उनकी उम्र 35 साल से भी कम थी। गुरुवार को स्टेडियम के बाहर हर तरफ तबाही का मंजर था। टूटे हुए कपड़े, जूते और अन्य सामान बिखरे पड़े थे। स्टेडियम के गेट नंबर 7, 18, 21 और 2 के पास इतने जूते-चप्पल मिले कि 150 बोरियां भर गईं। उनमें से कई जूतों पर खून के निशान थे, जो सूख चुके थे। बच्चों के जूतों को देखकर सफाईकर्मियों का कलेजा कांप गया।

मरने वालों की उम्र जानकर दुख बढ़ जाएगा

14 साल की दिव्यांशी को यह अंदाजा नहीं था, वह चिन्नास्वामी स्टेडियम नहीं, बल्कि मौत के मुंह में जा रही है। बेंगलुरु के भगदड़ में मरने वालों में 19 साल का चिन्मय और 17 वर्ष का शिवलिंगा भी था। हादसे में 20 वर्ष का भूमिक और श्रवण भी मारा गया। मरे अन्य लोगों की पहचान दूरेसा (32 साल), सहाना (25 साल), देवी (29 साल), अक्षता (27 साल) के तौर पर हुई थी। इसके अलावा 47 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। एक सुरक्षा गार्ड ने बताया कि उसने सैकड़ों लोगों को गिरते, लंगड़ाते और दर्द से चीखते हुए देखा। भगदड़ के बाद अगली सुबह भयावह थी। हर तरफ चप्पल जूते बिखरे थे।

फैंस के लिए गेट नंबर 7 बना मौत का जाल

गेट नंबर 7 का मंजर दर्दनाक था। स्टेडियम के मुख्य द्वार के बाहर दीवार के ऊपर कंटीले तारों की बाड़ पर फटी हुई शर्ट और पतलून लटकी हुई थी। कब्बन पार्क से लाए गए पौधों के कुचले हुए थे। साथ ही हर आकार, साइज़ और रंग के सैकड़ों जोड़ी जूते भी बिखरे पड़े थे। मज़दूरों को कचरा, जूते, फटे कपड़ों के अलावा टूटे हुए चश्मे, टोपियां और झंडे इकट्ठा करने में घंटों लग गए। सिर्फ जूते-चप्पलों से 150 बोरियां फुल हो गईं। स्टेडियम के अंदर भी नुकसान हुआ। दरवाजे टूटे हुए थे। सीढ़ियां क्षतिग्रस्त हो गई थीं। वॉश बेसिन और अन्य सामान टूट गए थे। दीवारें गिर गई थीं और बाड़ मुड़ गई थी।

'ऐसा माहौल था जैसे स्टेडियम में युद्ध हुआ हो'

पिछले पांच साल से स्टेडियम में काम करने वाली रूपा ने बताया कि उसने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। रूपा ने कहा कि वह हर मैच के बाद हम सफाई करती है, लेकिन गुरुवार की सुबह रुलाने वाला था। रूपा ने बताया कि उसे हर तरह के जूते मिले। महंगे जूते, महिलाओं की चमकती चप्पलें और पांच साल के बच्चों की चप्पलें भी मिलीं। रूपा ने कहा कि अमीर होने या अच्छे कपड़े पहनने का क्या फायदा, अगर भीड़ में कुचलकर मरना पड़े। एक अन्य कर्मचारी सुबुली ने बताया कि वह 2015 से स्टेडियम में काम कर रही हैं। भगदड़ के बाद अगली सुबह स्टेडियम का हाल देखकर उनका दिल टूट गया। उन्होंने कहा कि सुबह ऐसा लग रहा था जैसे कोई युद्ध हुआ हो। सुबुली को एक छोटे बच्चे की चप्पल मिली। उसे लगा कि अगर उसका बच्चा वहां होता तो क्या होता?

'मरी हुई महिला को देखा मगर पुलिस ने...'

जब कोई बड़ा आयोजन होता है तो स्टेडियम में सफाई के लिए कुछ कर्मचारियों को कॉन्ट्रैक्ट पर भी रखा जाता है। बुधवार को सफाई कर्मचारियों को जल्दी सफाई करने के लिए कहा गया था क्योंकि गृह मंत्री आने वाले थे। पिछले 18 सालों से काम कर रहे शशि एस भी बुधवार को स्टेडियम में थे। उन्हें मेहमानों को खाना परोसने के लिए कहा गया था। शशि ने बताया कि बुधवार शाम 4:45 बजे के आसपास स्टेडियम के बाहर भीड़ बढ़ने लगी थी। भीड़ के डर से कुछ लोग किसी भी तरह से अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे। एक अन्य कर्मचारी ने बताया कि उसने भगदड़ के बाद गेट पर एक मरी हुई महिला को देखा। उसे पुलिस ने उन्हें वापस अंदर जाने के लिए कहा।
विश्वनाथ सुमन
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विश्वनाथ सुमन
प्रिंट और डिजिटल में 18 वर्षों का सफर। अमर उजाला, नवभारत टाइम्स ( प्रिंट), ईटीवी भारत के अनुभव के साथ संप्रति nbt.in में।... और पढ़ें
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