ऋषिकेश: उत्तराखंड के ऋषिकेश की एक महिला ने मेडिक्लेम दावे की लड़ाई 13 सालों तक लड़ी और आखिरकार उसे जीत मिली है। महिला ने वर्ष 2012 में अपने पति को किडनी दान की थी। किडनी दान करने के लिए उसके अस्पताल में भर्ती होने के दावे को बीमा कंपनी की ओर से खारिज कर दिया था। बीमा कंपनी की ओर से कहा गया कि महिला मरीज नहीं थी। इसलिए अस्पताल में उसके भर्ती होने को मेडिक्लेम के दायरे में नहीं रखा जा सकता है। अब 13 साल बाद उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग ने इस संबंध में फैसला सुनाया।
रेणु के पति जगन्नाथ बंसल ने खुद और परिवार को कवर करने वाली एक मेडिक्लेम पॉलिसी ली थी। इसे उन्होंने लगातार 13 साल तक रिन्यू कराया था। फरवरी 2012 में उन्होंने रेणु के साथ किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी करवाई। एनआईसीएल ने जगन्नाथ की लागतों की आंशिक प्रतिपूर्ति की।
वर्ष 2022 के उद्योग समीक्षा में पाया गया कि कई बीमाकर्ता उन लोगों के लिए नई पॉलिसीज देने या मौजूदा पॉलिसीज को रिन्यूअल करने से इनकार कर रहे हैं, जिन्होंने पहले अंग दान किया था। पॉलिसी के खंड स्टैंडर्डाइज नहीं हैं, जिस कारण अक्सर विवाद होते रहते हैं।
एनआईसीएल को आदेश
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (एनआईसीएल) को राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग ने शुक्रवार को रेणु बंसल को ब्याज और मुआवजे के साथ बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया है। रेणु ने एनआईसीएल के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें उन्होंने अंगदाता के रूप में अस्पताल में रहने के दौरान हुए खर्चों को बीमा कंपनी के अस्वीकार करने का आरोप लगाया था।रेणु के पति जगन्नाथ बंसल ने खुद और परिवार को कवर करने वाली एक मेडिक्लेम पॉलिसी ली थी। इसे उन्होंने लगातार 13 साल तक रिन्यू कराया था। फरवरी 2012 में उन्होंने रेणु के साथ किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी करवाई। एनआईसीएल ने जगन्नाथ की लागतों की आंशिक प्रतिपूर्ति की।
कंपनी ने किया था इनकार
इसने रेणु के अस्पताल में भर्ती होने के खर्च को कवर करने से इनकार कर दिया, यह तर्क देते हुए कि वह मरीज नहीं थी। 2014 में जिला उपभोक्ता आयोग ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन एनआईसीएल ने राज्य आयोग के समक्ष फैसले को चुनौती दी। लंबी कानूनी प्रक्रिया के दौरान जगन्नाथ की मृत्यु हो गई, लेकिन रेणु ने केस लड़ना जारी रखा।आयोग का आया आदेश
राज्य आयोग ने उनके दावे को सही ठहराया और फैसला सुनाया कि पॉलिसी में बीमा राशि के 50 फीसदी तक दानकर्ता के खर्च को कवर किया गया है। आयोग ने कहा कि खंड के अनुसार, दानकर्ता रेणु बंसल का किडनी प्रत्यारोपण की तिथि पर 65,000 रुपये का बीमा किया गया था। प्रत्यारोपण की लागत के लिए 66,667 रुपये की राशि खर्च की गई। इस हिसाब से उन्हें बीमा राशि का अधिकतम 50 फीसदी यानी 32,500 रुपये पाने का अधिकार है।ब्याज के साथ भुगतान का आदेश
एनआईसीएल को 2012 में शिकायत की तिथि से 7 फीसदी वार्षिक ब्याज के साथ 32,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। आयोग ने मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी के खर्च के लिए रेणु को 25,000 रुपये का मुआवजा भी दिया। दरअसल, देश में अंग दानकर्ता कवरेज बीमा कंपनियों के बीच व्यापक रूप से भिन्न होता है। वहीं, कुछ मेडिक्लेम पॉलिसियों में अंग दान करने वालों के लिए अस्पताल में भर्ती होने का खर्च शामिल होता है। वहीं कई अन्य पॉलिसीज उन्हें बाहर रखती हैं या उन्हें उप-सीमाओं के अंतर्गत सीमित करती हैं।वर्ष 2022 के उद्योग समीक्षा में पाया गया कि कई बीमाकर्ता उन लोगों के लिए नई पॉलिसीज देने या मौजूदा पॉलिसीज को रिन्यूअल करने से इनकार कर रहे हैं, जिन्होंने पहले अंग दान किया था। पॉलिसी के खंड स्टैंडर्डाइज नहीं हैं, जिस कारण अक्सर विवाद होते रहते हैं।