नई दिल्ली: इंडियन नेवी की लेफ्टिनेंट कमांडर रूपा और दिलना ने एक अनोखे और साहसिक सफर को पूरा कर इतिहास रचा है। पिछले साल 2 अक्टूबर को शुरू हुई उनकी सागर परिक्रमा इस साल 29 मई सफलतापूर्वक पूरी हुई। करीब आठ महीने तक ‘आईएनएसवी तारिणी’ पर सवार ये दो नेवी अधिकारी समंदर की ऊंची-ऊंची लहरों को चीरते हुए करीब 25400 समुद्री मील (करीब 50000 किलोमीटर) की दूरी तय कर पूरी दुनिया का चक्कर लगा आईं। इस दौरान चार महाद्वीपों, तीन महासागरों और तीन ग्रेट केप्स को पार किया।
सशक्तिकरण– आठ महीने का अनुभव
NBT से बात करते हुए कमांडर रूपा और दिलना ने अपनी यात्रा को एक शब्द में ‘सशक्तिकरण’ बताया। रूपा ने बताया कि इस दौरान हम एक-दूसरे के सबसे बड़े सहारे थे। जब हालात मुश्किल होते तो हम हंसी-मज़ाक से माहौल हल्का करते और आने वाले अच्छे दिनों की उम्मीद में खुद को मोटिवेट करते थे।
कमांडर दिलना ने बताया कि इस दौरान अनेक चुनौतियां आईं । एक बार तो घने अंधेरे में नेविगेशन पैनल, GPS, ऑटोपायलट और हवा की दिशा बताने वाला यंत्र अचानक बंद हो गया। तब हम प्रशांत महासागर के बीचों-बीच थे और उस वक्त लगा कि हम समुद्र में खो गए हैं। अगर मदद की जरूरत होती तो वहां किसी को भी पहुंचने में चार-पांच दिन लग सकते थे। लेकिन तीन घंटे की मेहनत से हमने वह दिक्कत दूर की और आगे बढ़े।
केप हॉर्न – समुद्र का माउंट एवरेस्ट
यात्रा का सबसे भयावह अनुभव बताते हुए कमांडर दिलना ने कहा कि हमारी पहली रात थी जब हमने केप हॉर्न को पार किया। केप हॉर्न को समुद्र का माउंट एवरेस्ट कहा जाता है, क्योंकि वहां का मौसम बहुत अनिश्चित होता है। वहां समुद्र बहुत उथल-पुथल भरा था। हर तरफ से बड़ी-बड़ी लहरें बहुत जोर से टकरा रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र उबल रहा हो और जैसे कोई वॉशिंग मशीन चल रही हो। पूरा समुद्र सफेद झाग से भर गया था जो दूर-दूर तक फैला था। उस दौरान हमें कई बार रोलओवर का सामना करना पड़ा और नाव एक तरफ झुक गई और बूम (पाल की रॉड) पानी से टकरा गई। इस पूरी यात्रा में, यहां तक कि ट्रेनिंग के दौरान भी हमने ऐसा समुद्र कभी नहीं देखा था। वो अनुभव हमारे लिए किसी बुरे सपने जैसा था। ऐसा लग रहा था जैसे हम पहाड़ों पर नाव चला रहे हों और फिर घाटियों में उतर रहे हों।
उन्होंने बताया कि हम 57 डिग्री दक्षिण तक सेल (यात्रा) करते गए जहां तापमान 2 डिग्री तक गिर गया। उस सर्दी में हमारे हाथ और शरीर सुन्न पड़ जाते थे। एक बार ऐसा भी हुआ जब नाव के हैच (छेद) से पानी अंदर आ गया जिससे कुछ इलेक्ट्रिकल उपकरण खराब हो गए और शॉर्ट सर्किट हो गया।
दुनिया का दुर्लभ खगोलीय नजारा
सबसे यादगार पल के बारे में कमांडर दिलना ने बताया कि हमने Comet A3 नामक दुर्लभ धूमकेतु देखा। जो करीब 80000 साल में एक बार आता है। हमने इसे लगभग एक हफ्ते तक चमकते हुए देखा और उस पल को मोबाइल कैमरे में कैद भी किया।
मानसिक और शारीरिक संघर्ष के बीच उम्मीद की किरण
दोनों नेवी ऑफिसर्स ने बताया कि तूफानों और खराब मौसम में कई बार आगे बढ़ना बेहद कठिन था। उन्होंने कहा कि सेलिंग अनिश्चितताओं से भरी होती है। कभी नहीं पता होता कि अगले पल क्या होगा। लेकिन हम हर चुनौती का सामना एक-एक करके करते गए। इस सफर ने हमें मानसिक और शारीरिक रूप से परखा और मजबूत बनाया। उन्होंने कहा कि सागर परिक्रमा के लिए चयन के बाद करीब तीन साल की कड़ी ट्रेनिंग में हमने नाव चलाना, कम संसाधनों में काम करना और इमरजेंसी को संभालना सीखा। नेवी की ट्रेनिंग ने हमें हर चुनौती से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार किया।
मां के बनाए खाने की याद
कमांडर दिलना ने बताया कि यात्रा शुरू करने पर मेरी मां और पति काफी चिंतित थे, खासकर पति, वो खुद नेवी में हैं तो उन्हें पता है कि समुद्र में मौसम कितना खराब हो सकता है और एक छोटी सी नाव में सफर करना कितना चुनौतीपूर्ण होता है। लेकिन बाद में मैं उन्हें समझा पाई कि मैं यह यात्रा कितनी शिद्दत से करना चाहती हूं। दिलना ने कहा कि पूरी यात्रा के दौरान परिवार ने मेरा पूरा साथ दिया और जब हम वापस लौटे तो वो पल उनके लिए गर्व और संतोष से भरा हुआ था। वे बहुत खुश थे कि हमने यह कठिन लक्ष्य हासिल किया। वह कहती हैं कि इस पूरी यात्रा के दौरान परिवार की और मां के बनाए खाने को मिस किया।
सशक्तिकरण– आठ महीने का अनुभव
NBT से बात करते हुए कमांडर रूपा और दिलना ने अपनी यात्रा को एक शब्द में ‘सशक्तिकरण’ बताया। रूपा ने बताया कि इस दौरान हम एक-दूसरे के सबसे बड़े सहारे थे। जब हालात मुश्किल होते तो हम हंसी-मज़ाक से माहौल हल्का करते और आने वाले अच्छे दिनों की उम्मीद में खुद को मोटिवेट करते थे।
कमांडर दिलना ने बताया कि इस दौरान अनेक चुनौतियां आईं । एक बार तो घने अंधेरे में नेविगेशन पैनल, GPS, ऑटोपायलट और हवा की दिशा बताने वाला यंत्र अचानक बंद हो गया। तब हम प्रशांत महासागर के बीचों-बीच थे और उस वक्त लगा कि हम समुद्र में खो गए हैं। अगर मदद की जरूरत होती तो वहां किसी को भी पहुंचने में चार-पांच दिन लग सकते थे। लेकिन तीन घंटे की मेहनत से हमने वह दिक्कत दूर की और आगे बढ़े।
केप हॉर्न – समुद्र का माउंट एवरेस्ट
यात्रा का सबसे भयावह अनुभव बताते हुए कमांडर दिलना ने कहा कि हमारी पहली रात थी जब हमने केप हॉर्न को पार किया। केप हॉर्न को समुद्र का माउंट एवरेस्ट कहा जाता है, क्योंकि वहां का मौसम बहुत अनिश्चित होता है। वहां समुद्र बहुत उथल-पुथल भरा था। हर तरफ से बड़ी-बड़ी लहरें बहुत जोर से टकरा रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र उबल रहा हो और जैसे कोई वॉशिंग मशीन चल रही हो। पूरा समुद्र सफेद झाग से भर गया था जो दूर-दूर तक फैला था। उस दौरान हमें कई बार रोलओवर का सामना करना पड़ा और नाव एक तरफ झुक गई और बूम (पाल की रॉड) पानी से टकरा गई। इस पूरी यात्रा में, यहां तक कि ट्रेनिंग के दौरान भी हमने ऐसा समुद्र कभी नहीं देखा था। वो अनुभव हमारे लिए किसी बुरे सपने जैसा था। ऐसा लग रहा था जैसे हम पहाड़ों पर नाव चला रहे हों और फिर घाटियों में उतर रहे हों।
उन्होंने बताया कि हम 57 डिग्री दक्षिण तक सेल (यात्रा) करते गए जहां तापमान 2 डिग्री तक गिर गया। उस सर्दी में हमारे हाथ और शरीर सुन्न पड़ जाते थे। एक बार ऐसा भी हुआ जब नाव के हैच (छेद) से पानी अंदर आ गया जिससे कुछ इलेक्ट्रिकल उपकरण खराब हो गए और शॉर्ट सर्किट हो गया।
दुनिया का दुर्लभ खगोलीय नजारा
सबसे यादगार पल के बारे में कमांडर दिलना ने बताया कि हमने Comet A3 नामक दुर्लभ धूमकेतु देखा। जो करीब 80000 साल में एक बार आता है। हमने इसे लगभग एक हफ्ते तक चमकते हुए देखा और उस पल को मोबाइल कैमरे में कैद भी किया।
मानसिक और शारीरिक संघर्ष के बीच उम्मीद की किरण
दोनों नेवी ऑफिसर्स ने बताया कि तूफानों और खराब मौसम में कई बार आगे बढ़ना बेहद कठिन था। उन्होंने कहा कि सेलिंग अनिश्चितताओं से भरी होती है। कभी नहीं पता होता कि अगले पल क्या होगा। लेकिन हम हर चुनौती का सामना एक-एक करके करते गए। इस सफर ने हमें मानसिक और शारीरिक रूप से परखा और मजबूत बनाया। उन्होंने कहा कि सागर परिक्रमा के लिए चयन के बाद करीब तीन साल की कड़ी ट्रेनिंग में हमने नाव चलाना, कम संसाधनों में काम करना और इमरजेंसी को संभालना सीखा। नेवी की ट्रेनिंग ने हमें हर चुनौती से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार किया।
मां के बनाए खाने की याद
कमांडर दिलना ने बताया कि यात्रा शुरू करने पर मेरी मां और पति काफी चिंतित थे, खासकर पति, वो खुद नेवी में हैं तो उन्हें पता है कि समुद्र में मौसम कितना खराब हो सकता है और एक छोटी सी नाव में सफर करना कितना चुनौतीपूर्ण होता है। लेकिन बाद में मैं उन्हें समझा पाई कि मैं यह यात्रा कितनी शिद्दत से करना चाहती हूं। दिलना ने कहा कि पूरी यात्रा के दौरान परिवार ने मेरा पूरा साथ दिया और जब हम वापस लौटे तो वो पल उनके लिए गर्व और संतोष से भरा हुआ था। वे बहुत खुश थे कि हमने यह कठिन लक्ष्य हासिल किया। वह कहती हैं कि इस पूरी यात्रा के दौरान परिवार की और मां के बनाए खाने को मिस किया।